Success Story: माता-पिता ने बेटे की पढाई के लिए बेचे गहने और मकान, बेटा 26वीं रैंक हासिल कर बना IAS, जानिए टॉपर प्रदीप सिंह की कामयाबी की कहानी
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अगर लक्ष्य सही हो और उसे पूरा करने के लिए की गई मेहनत एक दिन जरूर रगं लाती है। आज हम ऐसे ही एक शक्ख की (Success Story)कहनी बताने जा रहे हैं जिसने अपनी कड़ी मेहनत से पुलिस में भर्ती होने के सपने को पूरा किया।
Success Story Of Pradeep Singh
ये कहानी है साल 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में 26वीं रैंक हासिल करने वाले प्रदीप सिंह की। बिहार मूल के इंदौर निवासी प्रदीप सिंह बेहद साधारण परिवार से आते हैं। प्रदीप वर्ष 2018 में 93वीं रैंक हासिल करके आईआरएस बन गए थे।
प्रदीप 22 वर्ष की उम्र में आईआरएस बनने में सफलता हासिल की थी। वह सबसे कम उम्र के आईआरएस अधिकारी बने थे। लेकिन प्रदीप का सपना तो आईएएस अधिकरी बनना था। जिसे उन्होंने पूरा करके ही दम लिया। उन्हें यह सफलता चौथे प्रयास में हासिल हुई। बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी प्रदीप ने अपनी असफलताओं से सीखे कुछ सबक बताए।
यूपीएससी की तैयारी एक लंबी प्रक्रिया है, हिम्मत न हारें
अपने आप से प्रतियोगिता करें और टेस्ट दें
लक्ष्य तय ही नहीं, उसे हासिल भी करें
तीनों चरणों की तैयारी इंटीग्रेटेड करें, अलग-अलग नहीं
हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करें
पूरा सिलेबस कवर करें, कोई एरिया कमजोर न रहने दें
प्रतिदिन रिवीजन करें
पिछले साल के प्रश्न पत्र जरूर देखें
अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखें. व्यायाम, योग और ध्यान आदि करते रहें
आईआरएस बनने के बाद भी जारी रखी तैयारी
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प्रदीप बताते हैं कि उन्होंने पहले प्रयास में यूपीएएसी में 93वीं रैंक हासिल करने के बाद भी जब तक रैंक अलाटमेंट नहीं हुई तब तक वह अगले अटेंप्ट की तैयारी में जुटे रहे। इसका फायदा यह हुआ कि वह दूसरे प्रयास में प्री परीक्षा असानी से पास कर गए और मेंस की तैयारी में जुट गए।
प्रदीप ने एक वेबसाइट से बात करते हुए बताया कि पहले प्रयास में भी रैंक काफी अच्छी थी। सभी विषयों में अच्छे अंक आए थे। ऐसे में यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल था कि सुधार कहां किए जाएं। आखिर में उन्होंने सभी विषयों को थोड़ा-थोड़ा और तैयार करना तय किया।
उन्होंने जनरल स्टडी और तीनों ऑप्श्नल पर फोकस किया। पहले साल की गलतियों पर फोकस किया। गलतियां जानने के लिए सीनियर्स से मदद ली। साथ ही उन्हें इंटरव्यू में औसत अंक मिले थे। इस पर खास ध्यान दिया। उनका कहना है कि सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है।
बेहद साधारण परिवार से आने वाले प्रदीप सिंह के पिता मनोज सिंह एक पेट्रोल पंप पर काम करते थे। घर की बेहद कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए प्रदीप ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी क्वॉलिफाई करने का फैसला किया था। जिसके लिए प्रदीप को उनके पिता ने घर बेचकर दिल्ली तैयारी करने को भेजा।
इस तैयारी के दौरान उनकी मां के गहने भी बिक गए। प्रदीप इस बात का हमेशा दबाव महसूस करते थे लेकिन यह पॉजिटिव था। वह अपनी तमाम मुश्किलों से सफलता हासिल करने के लिए प्रेरणा हासिल करते थे।