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सभी वाहनों से अलग होता है TRAIN का ऑटोमेटिक ब्रेक, जानें किस परिस्थिति में लगता है

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ट्रेन

किसी भी वाहन को रोकने या उसे कंट्रोल करने के लिए ब्रेक की अहम भूमिका होती है, जिसकी वजह सड़क दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। दुनिया भर में चलने वाले हर वाहन में ब्रेक मौजूद होता है, जिसे दबाने से तुरंत गाड़ी रूक जाती है।


लेकिन ट्रेन एक ऐसा वाहन है, जिसमें मौजूद ब्रेक को अचानक या झटके के साथ नहीं दबाया जा सकता है और न ही ब्रेक लगाते ही पूरी की पूरी ट्रेन एक साथ रूक जाती है। दरअसल ट्रेन में कई डिब्बे मौजूद होते हैं, जिससे उसकी लंबाई बढ़ जाती है और उसमें ब्रेक लगने की प्रक्रिया धीरे-धीरे पूरी होती है। लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि ट्रेन में किन परिस्थितियों में अपने आप ऑटोमेटिक ब्रेक (Automatic brake) लग जाते हैं। Indian Railway Brake system in Hindi

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ट्रेन का होता है अलग ब्रेक सिस्टम (Brake System in Train)
सड़कों पर दौड़ने वाले बाइक, कार, ट्रक और बस जैसे वाहनों में सामान्य ब्रेक मौजूद होते हैं, जिसे दबाकर चलती गाड़ी को रोका जा सकता है। लेकिन का ट्रेन ब्रेक सिस्टम (Brake System in Train) इससे बिल्कुल और आधुनिक होता है, क्योंकि ट्रेन के टायर में हर वक्त ब्रेक लगा रहता है।


ऐसे में जब ट्रेन के लोको पायलट को गाड़ी चलानी होती है, तो वह टायर से ब्रेक हटा देता है और फिर ट्रेन को आगे बढ़ाता है। टायर पर लगे ब्रेक को एयर प्रेशर के जरिए हटाया जाता है, जो एक बटन के माध्यम से काम करता है।

इसी तरह जब ट्रेन को रोकना होता है, तो लोको पायलट एयर प्रेशर को बंद कर देता है जिसकी वजह से ट्रेन के पहियों में ब्रेक लग जाता है। अगर आपने कभी ट्रेन के चलने या रूकने की प्रक्रिया पर ध्यान दिया है, तो आप जानते होंगे कि इस प्रक्रिया के दौरान एयर प्रेशर रिलीज होने की आवाज सुनाई देती है।


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ट्रेन का ऑटोमेटिक ब्रेक सिस्टम कैसे काम करता है? (Automatic Brake in Train)
कई डिब्बों वाली ट्रेन को चलाना बहुत ही जिम्मेदारी भरा काम होता है, क्योंकि लोको पायलट के हाथों में सैकड़ों लोगों की जान होती है। ऐसे में लोको पायलट की जरा-सी चूक की वजह से सैकड़ों लोगों की जान जा सकती है और अन्य चीजों का नुकसान भी हो सकता है।

यही वजह है कि लोको पायलट को सतर्क रखने के लिए ट्रेन के इंजन से एक स्विच को जोड़ा जाता है, जिसे डेड मैन स्विच कहा जाता है। लोको पायलट को ट्रेन चलान के दौरान कुछ समय के अंतराल में उस डेड मैन स्विच को दबाना पड़ता है, ताकि यह पता लग सके कि ड्राइव एक्टिव है।

ऐसे में अगर ट्रेन का लोको पायलट सो जाता है या फिर डेड मैन स्विच को दबाना भूल जाता है, तो उस स्थिति में ट्रेन में ऑटोमेटिक ब्रेक लग जाते हैं और ट्रेन अपने आप रूक जाती है। इस ऑटोमेटिक ब्रेक सिस्टम की वजह से बड़ी रेल दुर्घटना होने से बच जाती है, जिसके बाद रेलवे विभाग लोको पायलट से संपर्क कर उसके सक्रिय होने की पुष्टि करता है।

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चैन पुलिंग (Chain Pulling in train)
ट्रेन में चैन पुलिंग (Chain Pulling in train) भी ऑटोमेटिक ब्रेक सिस्टम का ही हिस्सा है, जिसमें यात्री सीट के ऊपर लगी चैन को खींच कर चलती हुई ट्रेन को रोक सकते हैं। हालांकि इस चैन को किसी आपातकालीन स्थिति में ही खींचा जा सकता है, ताकि बड़ी दुर्घटना को होने से रोका जा सके।

चैन पुलिंग के जरिए ब्रेक पाइप से हवा का प्रेशर बाहर निकाल देता है, जिससे ट्रेन के पहियों की स्पीड कम हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप ट्रेन कुछ मीटर आगे जाकर रूक जाती है। ऐसे में चैन खींचने पर ड्राइवर को हूटिंग सिग्नल मिलता है और वह ट्रेन को रोकने के लिए यात्री से कारण पूछता है।

ऐसे में अगर यात्री का कारण वाजिब लगता है, तो उसे कुछ नहीं कहा जाता और ट्रेन रूक जाती है। हालांकि अगर कोई यात्री मजे में चैन पुलिंग करता है, तो उसे ट्रेन को लेट करने के अपराध में जुर्माना भरना पड़ता है या फिर उस यात्री को जेल की सजा भी हो सकती है।

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ट्रेन में कब ब्रेक लगा सकता है लोको पायलट?
ट्रेन को रोकने या उसमें कभी भी ब्रेक लगाने की जिम्मेदारी लोको पायलट की नहीं होती है, यानी वह अपनी मर्जी से ट्रेन को किसी भी स्टेशन या पटरी पर नहीं रोक सकते है। लोको पायलट को सिग्नल के आधार पर ट्रेन में ब्रेक लगाने होते हैं, जो रेलवे विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं।

रेल की पटरियों पर मौजूद सिन्गल में तीन प्रकार की लाइट जलती हैं, जिसमें लाल, हरा और पीला रंग शामिल होता है। हरा रंग ट्रेन को चलाए रखने का संकेत देता है, जबकि पीला रंग ट्रेन की रफ्तार को धीमा करने और लाल रंग ट्रेन को रोकने यानी उसमें ब्रेक लगाने का संकेत देता है।

लोको पायलट सिग्नल पर लाल रंग की बत्ती जलने पर ही ट्रेन में ब्रेक लगा सकता है, इसके अलावा वह किसी भी परिस्थिति में ट्रेन नहीं रोक सकता है। यही वजह है कि हर साल ट्रेन की पटरियों को पार करने वाले लोगों की मौत हो जाती है, क्योंकि ट्रेन रोकने का फैसला लोको पायलट के हाथ में नहीं होता है और न ही उसे यात्रियों का जान खतरे में डालने का अधिकार होता है।

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इमरजेंसी ब्रेक सिस्टम (Emergency Brake in Train)
लोको पायलट भले ही अपनी मर्जी से ट्रेन नहीं रोक सकता है, हालांकि इसके बावजूद भी ट्रेन में इमरजेंसी यानी आपातकालीन स्थिति में ब्रेक लगाने की सुविधा मौजूद होती है। ऐसे में रेलवे लाइन का पुल टूटने, जानवरों का बड़ा झुंड पटरियों पर आ जाने या ट्रेन में तकनीकी खराबी होने की स्थिति में लोको पायलट ट्रेन में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है।

इमरजेंसी ब्रेक (Emergency Brake in Train) लगाते ही पाइप के अंदर मौजूद पूरा प्रेशर खत्म हो जाता है, जो ट्रेन के पहियों को पूरी ताकत के साथ रोकने और आगे न बढ़ने देने का काम करता है। हालांकि इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बावजूद भी ट्रेन एकदम से नहीं रूकती है, बल्कि वह धीमी रफ्तार के साथ कई मीटर आगे जाने के बाद पूरी तरह से रूक पाती है।

आमतौर पर एक दो जानवर या इंसान के पटरी पर आने की स्थिति में लोको पायलट ट्रेन में ब्रेक नहीं लगाता है, क्योंकि उस स्थिति में भी ट्रेन कई मीटर आगे जाकर रूकती है। ऐसे में ट्रेन में ब्रेक लगाने के बावजूद भी पटरी पर मौजूद जानवर या इंसान की मौत होना तय है, इसलिए लोको पायलट उस स्थिति में ब्रेक नहीं लगाता है।
 

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