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IAS SUCESS STORY: अजनबी के ताने ने कैसे बदल दी बस कन्डक्टर की बेटी की ज़िंदगी, जानिए SALINI AGNIHOTRI की सफलता की कहानी

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 upsc की परीक्षा भारत की  सबसे कठिन परीक्षाओं मे से एक मानी जाती है| हिमाचल प्रदेश के ऊना के छोटे से गांव ठठ्ठल की शालिनी अग्निहोत्री, एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनके साहस और हौंसले के बारे में जितना कहा जाए वह कम है. वे जो ठान लेती हैं वह करके ही दिखाती हैं. बचपन में देखा एक सपना शालिनी के जीवन का मकसद बन गया. पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली शालिनी ने न केवल अपना सपना पूरा किया बल्कि वे एक कड़क पुलिस ऑफिसर भी बनी. आज अपने काम से शालिनी ने ऐसी पहचान बनायई है कि अपराधी उनके नाम से थर्र-थर्र कांपते हैं. यही नहीं उनकी काबलियत के कारण उन्हें प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठित बेटन और गृहमंत्री की रिवॉल्वर भी दी गयी है. और तो और ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने बेस्ट ट्रेनी का अवॉर्ड जीता और राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत हुईं. कुल्लू में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने नशे के काराबारियों के खिलाफ ऐसी मुहिम चलाई की रातों-रात चर्चा में आ गईं. आज अपराधी उनके नाम से ही घबराते हैं.

ऐसे आया पुलिस में जाने का विचार:

बचपन में एक बार शालिनी अपनी मां के साथ उसी बस में सफर कर रही थी, जिसमें उनके पिता कंडक्टर थे. एक व्यक्ति ने उनकी मां की सीट के पीछे हाथ लगाया हुआ था, जिससे वे बैठ नहीं पा रही थी. उन्होंने उस व्यक्ति से कई बार कहा पर उसने हाथ नहीं हटाया बल्कि पलटकर बोला तुम कहां कि डीसी हो जो तुम्हारी बात मानें? शालिनी के मन में उसी समय आया कि डीसी क्या होता है और अगर वे डीसी होती तो क्या वह व्यक्ति उनकी बात मान लेता. यह तो थी बचपन की घटना पर शालिनी ने वहां से आकर सब पता किया कि पुलिस में डीसी क्या होता है, उसके क्या अधिकार होते हैं, वो क्या-क्या कर सकता है. बस यहीं से शालिनी के बाल मन ने तय किया कि वे भी बड़ी होकर पुलिस की बड़ी अफसर बनेंगी.

मां-पिता ने दी पूरी छूट, नहीं किया बेटा-बेटी में भेद :

एक साक्षात्कार में बात करते हुए शालिनी कहती हैं कि उनकी सफलता में उनके मां-बाप का बहुत बड़ा सहयोग है. वे कहती हैं, उन्हें कभी किसी चीज के लिए रोक-टोक नहीं सहनी पड़ी. वे बचपन से टॉम ब्वॉय टाइप थी. कंचे खेलती थी, क्रिकेट खेलती थी और लड़कों की टीम में अकेली लड़की हुआ करती थी. उनकी मां से लोगों ने कहा भी कि आपकी बेटी तो लड़कों जैसी है पर उन्होंने कभी शालिनी को अपने मन का करने से नहीं रोका. पिता ने कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी. दस की मांग रखी तो पन्द्रह दिए. मां-बाप के इस प्यार, विश्वास और छूट का शालिनी ने कभी गलत फायदा नहीं उठाया. शालिनी की स्कूली शिक्षा धर्मशाला के डीएवी स्कूल से हुई, इसके बाद उन्होंने हिमाचल यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चर में स्नातक की डिग्री ली. फिर एमएससी करने के दौरान उन्होंने यूपीएएससी की तैयारी भी शुरू कर दी.

घर में किसी को नहीं बताया यूपीएससी के बारे में :

जहां यूपीएससी के कैंडिडेट्स इतना ज्यादा सपोर्ट की जरूरत महसूस करते हैं कि उनके मां-बाप या परिवार कदम-कदम पर संबल बनकर खड़े रहते हैं, वहीं शालिनी अलग थी. उन्होंने अपने घर में किसी को इस परीक्षा की तैयारी के विषय में नहीं बताया. शालिनी को लगता था कि इतनी कठिन परीक्षा है कि अगर पास नहीं हुयी तो कहीं घरवाले निराश न हों. कॉलेज के बाद शालिनी यूपीएससी की तैयारी करती थी. न कोचिंग ली उन्होंने, न ही किसी बड़े शहर का रुख किया. उनके यूनिवर्सिटी हॉस्टल में एक अजब सा सुकून और शांति रहती थी. शालिनी को पढ़ायी के लिये ये माहौल श्रेष्ठ लगता था, जिसका उन्होंने पूरा फायदा उठाया. शालिनी ने मई 2011 में परीक्षा दी और 2012 में साक्षात्कार का परिणाम भी आ गया. शालिनी ने 285वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. जैसा कि वे हमेशा से चाहती थी उन्होंने इंडियन पुलिस सर्विस चुनी और आगे चलकर एक सख्त पुलिस ऑफिसर साबित हुयीं. शालिनी की बड़ी बहन डॉक्टर हैं और भाई एनडीए पास करके आर्मी में हैं. तीनों भाई-बहनों ने मां-बाप का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया.

शालिनी ने दिखा दिया कि अगर इरादों में दम हो तो कोई मंजिल मुश्किल नहीं. उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प से न सिर्फ अपने सपने को पाया बल्कि मनपसंद क्षेत्र में पहुंचकर भी रुकी नहीं, वहां भी टॉप पर पहुंचकर ही दम लिया. यही नहीं, शालिनी का सफर अभी भी जारी है.
 

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