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झुग्गी झोपड़ियों में गुजरा बचपन, मेहनत कर उम्मुल खेर ने आईएएस बन कायम की मिशाल

Jobs Haryana, Success Story Of IAS Ummul कहते हैं कि अगर सपना बड़ा हो और उस पूरा करने के लिए दिन रात की गई मेहनत एक ना एक दिन जरूर रंग लाती है। आज हम एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहें है, जिसकी कहानी सुनकर आपका दिल उसे सलाम करने के लिए कहेगा।
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झुग्गी झोपड़ियों में गुजरा बचपन, मेहनत कर उम्मुल खेर ने आईएएस बन कायम की मिशाल

Jobs Haryana, Success Story Of IAS Ummul

कहते हैं कि अगर सपना बड़ा हो और उस पूरा करने के लिए दिन रात की गई मेहनत एक ना एक दिन जरूर रंग लाती है। आज हम एक ऐसी लड़की की कहानी बताने जा रहें है, जिसकी कहानी सुनकर आपका दिल उसे सलाम करने के लिए कहेगा। इस लड़की का नाम उम्मुल खेर है। उम्मुल जन्म से ही दिव्यांग पैदा हुई थीं, लेकिन उन्होंने दिव्यांगता को अपनी ताकत बना लिया और झुग्गी बस्ती में रहने से लेकर आईएएस बनने तक का सफर तय किया। मीडिया से बात करते हुए उम्मुल ने अपने संघर्ष की कहानी बताई। आइए जानते हैं इस बेमिसाल सक्सेस स्टोरी के बारे में।

झुग्गी झोपड़ियों में गुजरा बचपन, मेहनत कर उम्मुल खेर ने आईएएस बन कायम की मिशाल

उम्मुल का जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में हुआ था। उम्मुल अजैले बोन डिसऑर्डर बीमारी के साथ पैदा हुई थीं। एक ऐसा डिसऑर्डर जो बच्‍चे की हड्डियां कमज़ोर कर देता है। हड्डियां कमज़ोर हो जाने की वजह से जब बच्चा गिर जाता है तो फ्रैक्चर होने की ज्यादा संभावना रहती है। इस वजह से 28 साल की उम्र में उम्मुल को 15 से भी ज्यादा फ्रैक्चर हुए। उम्मुल ने बताया कि दिल्‍ली में निजामुद्दीन के पास झुग्गियां हुआ करती थी। उसी झुग्‍गी इलाके में उम्मुल का बचपन बीता। उम्मुल के पापा फुटपाथ पर मूंगफली बेचा करते थे। 2001 में झुग्गियां टूट गईं, फिर उम्मुल और उनका परिवार त्रिलोकपुरी इलाके में चले गए। त्रिलोकपुरी में किराये के मकान में रहने लगे। उस वक्त उम्मुल सातवीं में पढ़ती थीं। घर में पैसे नहीं थे इसलिए पढ़ाई की राह आसान नहीं थी। मगर जज्बे की धनी उम्मुल पढ़ना चाहती थीं इस वजह से अपना खर्च उठाने के लिए उम्मुल ने खुद ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया।

झुग्गी झोपड़ियों में गुजरा बचपन, मेहनत कर उम्मुल खेर ने आईएएस बन कायम की मिशाल

उम्मुल जब स्कूल में थी तब उनकी मां का देहांत हो गया। उम्मुल की सौतेली मां के साथ उम्मुल का रिश्ता अच्छा नहीं था। घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। उम्मुल की पढ़ाई को लेकर घर में रोज़ झगड़ा होता था। ऐसे में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उम्मुल अपने घर से अलग हो गई। तब वो नौ वीं क्लास में थीं। त्रिलोकपुरी में एक छोटा सा कमरा किराये पर लिया। एक नौं वीं क्लास की लड़की को त्रिलोकपुरी इलाके में अकेले किराए पर रहना आसान नहीं था। डर का माहौल था। उम्मुल को बहुत समस्या का सामना करना पड़ा। उम्मुल रोज आठ-आठ घंटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी।

झुग्गी झोपड़ियों में गुजरा बचपन, मेहनत कर उम्मुल खेर ने आईएएस बन कायम की मिशाल

पांचवीं क्लास तक दिल्ली के आईटीओ में दिव्यांग बच्चों के स्कूल में पढ़ाई की। फिर आठवीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढाई की। यहां मुक्त में पढ़ाई होती थी। आठवीं क्लास में उम्मुल स्कूल की टॉपर थी फिर स्‍कॉलरशिप के जरिये दाख़िला एक प्राइवेट स्कूल में हुआ। यहां उम्मुल ने 12वीं तक पढ़ाई की। दसवीं में उम्मुल के 91 प्रतिशत मार्क्‍स थे। 12वीं क्लास में उम्मुल के 90 प्रतिशत मार्क्‍स थे। तब भी उम्मुल अकेले रहती थी, ट्यूशन पढ़ाती थी। 12वीं के बाद उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइक्लॉजी से ग्रेजुएशन किया। उम्मुल की संघर्ष की कहानी धीरे-धीरे सबको पता चली।

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उम्मुल जब गार्गी कॉलेज में थी तब अलग-अलग देशों में दिव्यांग लोगों के कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2011 में उम्मुल सबसे पहले एक कार्यक्रम के तहत दक्षिण कोरिया गईं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में जब उम्मुल पढ़ाई करती थीं तब भी बहुत सारे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं। उम्मुल तीन बजे से लेकर रात को ग्यारह बजे तक ट्यूशन पढ़ाती थी। ग्रेजुएशन के बाद उम्मुल को साइकोलॉजी विषय छोड़ना पड़ा। दरअसल साइकॉलॉजी में इंटर्नशिप होती थी। उम्मुल अगर इंटरशिप करती तो ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती।

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उम्मुल का जेएनयू में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स के लिए एडमिशन हो गया। यहां उम्मुल ने साइकोलॉजी की जगह इंटरनेशनल रिलेशंस चुना। जेएनयू में उम्मुल को हॉस्टल मिल गया। जेएनयू के हॉस्टल का कम चार्ज था। अब उम्मुल को ज्यादा ट्यूशन पढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी। एमए पूरी करने के बाद उम्मुल ने जेएनयू में एमफिल में दाख़िला ले लिया। 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हुआ। 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हो पाए थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं। फिर उम्मुल एक साल छुट्टी लेकर इस प्रोग्राम के लिए जापान चली गई। इस प्रोग्राम के जरिये उम्मुल दिव्‍यांग लोगों को यह सिखाती थी कि कैसे एक इज्‍जत की ज़िंदगी जी जाए। एक साल ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद उम्मुल भारत वापस आई और एमफिल की पढ़ाई पूरी की।

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एमफिल पूरी करने के साथ-साथ उम्मुल ने जेआरफ भी क्लियर कर ली। अब उम्मुल को पैसे मिलने लगे। अब उम्मुल के पास पैसे की समस्या लगभग खत्म हो गई। एमफिल पूरा करने के बाद उम्मुल ने जेएनयू में पीएचडी में दाख़िला लिया। जनवरी 2016 में उम्मुल ने आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर। उम्मुल ने 420वीं रैंक हासिल की।

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उम्मुल का कहना है कि उनके परिवार के लोगों ने उनके साथ जो भी किया वह उनकी गलती थी। उम्मुल का कहना है कि शायद उनके पिता ने लड़कियों को ज्यादा पढ़ते हुए नहीं देखा था इसीलिए वह उम्मुल को नहीं पढ़ाना चाहते थे। उम्मुल का कहना है कि उसने अपने परिवार को माफ़ कर दिया है। अब परिवार के साथ उसके अच्‍छे संबंध हैं। अब उम्मुल के माता-पिता उनके बड़े भाई के साथ राजस्थान में रह रहे हैं। उम्मुल का कहना है कि वह अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती है और अब वह उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जो‍कि उनका हक है।

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