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नेवी में भी होते हैं एयरफोर्स की तरह पायलट, जानिए फिर उनका क्या काम होता है?

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भारतीय सेना की कई विंग है, जो जमीन, पानी और हवा में भारत की सीमा की सुरक्षा करते हैं। भारतीय नेवी पानी में भारत की सुरक्षा के लिए तैयार रहती है तो एयर फोर्स हवा में दुश्मन को धूल चटाने की हिम्मत रखती है। नेवी में कई रैंक के ऑफिसर होते हैं, जो जल में रहकर भारत की सीमा का ध्यान रखते हैं, जिनमें पायलट भी होते हैं। जी हां, नेवी में एयरफोर्स की तरह पायलट होते हैं, जो प्लेन उड़ाने का काम भी करते होंगे।

आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर नेवी में पायलट क्या करते हैं और उनका क्या काम होता है। एयरफोर्स में तो पायलट का काफी काम होता है, लेकिन नेवी के पायलट के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में जानते हैं कि आखिर नेवी के पायलट एयरफोर्स से कितने अलग होते हैं और उनका क्या काम होता है।


भारतीय सेना की कई विंग है, जो जमीन, पानी और हवा में भारत की सीमा की सुरक्षा करते हैं। भारतीय नेवी पानी में भारत की सुरक्षा के लिए तैयार रहती है तो एयर फोर्स हवा में दुश्मन को धूल चटाने की हिम्मत रखती है। नेवी में कई रैंक के ऑफिसर होते हैं, जो जल में रहकर भारत की सीमा का ध्यान रखते हैं, जिनमें पायलट भी होते हैं। जी हां, नेवी में एयरफोर्स की तरह पायलट होते हैं, जो प्लेन उड़ाने का काम भी करते होंगे।

आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर नेवी में पायलट क्या करते हैं और उनका क्या काम होता है। एयरफोर्स में तो पायलट का काफी काम होता है, लेकिन नेवी के पायलट के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में जानते हैं कि आखिर नेवी के पायलट एयरफोर्स से कितने अलग होते हैं और उनका क्या काम होता है।

क्या होता है अंतर?
एयरफोर्स के पायलट और नेवी पायलट का काम मिशन के आधार पर होता है। मिशन और ऑपरेशन में अंतर होने की वजह से उन्हें उनके मिशन के आधार पर तैयार किया जाता है। दरअसल, नेवी पायलट शिप पर रहते हैं और एयरफोर्स के पायलट एयर बेस कैंप पर रहते हैं। नेवी पायलट का ज्यादा काम कार्गो प्लेन से संबंधित होता है और वे समुद्री सीमा में ऑपरेशन को अंजाम देते हैं, जबकि एयरफोर्स के पायलट एयर टू एयर फाइट में ज्यादा माहिर होते हैं।

वायु सेना और नेवी के पायलट की ट्रेनिंग भी काफी अलग होती है। दरअसल, नौसेना के पायलट आमतौर पर मिशन के लिए तेज रिएक्ट करते हैं क्योंकि उनकी पोस्टिंग विमान वाहक पर होती है और वहां के आस-पास के क्षेत्र में ही उन्हें ऑपरेशन को अंजाम देना होता है। वहीं वायु सेना के पायलट अपने रिजन के एयर बेस में तैनात रहते हैं और उन्हें एक्शन लेने में टाइम लगता है। इसलिए उन्हें उस स्थिति के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।

साथ ही नेवी पायलट को विमान वाहक से लैंडिंग और टेकऑफ को अंजाम देना होता है। कहा जाता है कि किसी बड़ी खाली जमीन में प्लेन को लैंड करवाने से ज्यादा मुश्किल विमान वाहक पर करना है। इसलिए कई मायनों में नेवी पायलट का काम मुश्किल हो जाता है। इसके लिए उन्हें उसके हिसाब से ट्रेनिंग दी जाती है।

नेवी के पायलट विमान वाहक के डेक पर टेकऑफ और लैंडिंग के लिए छोटे विमानों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जबकि वायु सेना के पायलट बड़े विमान से ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। नेवी में कार्गो प्लेन का ज्यादा इस्तेमाल होता है। अहम काम टेक ऑफ और लेंडिग का होता है, क्योंकि दोनों पायलट अलग अलग प्लेटफॉर्म से काम करता है। नेवी में हेलीकॉप्टर का भी ज्यादा इस्तेमाल होता है, इसलिए ये पायलट हैलीकॉप्टर के आधार पर ट्रेंड किए जाते हैं।

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