देश सेवा का इस परिवार में है जबरदस्त जुनून, परिवार की पांचवी सदस्य बनी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट

Jobs Haryana, Success Story Of Vinita Tripathi मेहनत करने वालों की कभी हार नही एक ना एक दिन मेहनत जरूर रंग लाती है। कहते हैं कि कामयाबी के पिछे परिवार का बहुत बड़ा हाथ होता है। आज हम एक ऐसी युवती की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होने अपने परिवार के सदस्यों से सीख लेकर
 

Jobs Haryana, Success Story Of Vinita Tripathi

मेहनत करने वालों की कभी हार नही एक ना एक दिन मेहनत जरूर रंग लाती है। कहते हैं कि कामयाबी के पिछे परिवार का बहुत बड़ा हाथ होता है। आज हम एक ऐसी युवती की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होने अपने परिवार के सदस्यों से सीख लेकर कामयाबी हासिल की है।

कानपुर के किदवई नगर निवासी विनीता त्रिपाठी का चयन भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर हुआ है। विनीता अपने परिवार की पांचवीं सदस्य हैं जो सेना में गई हैं। पिता विपिन त्रिपाठी भी सूबेदार हैं। मूल रूप से कानपुर देहात के गांव सेरुआ, ब्लॉक सरवनखेड़ा की रहने वाली विनीता ने पिता का ट्रांसफर अलग-अलग स्थानों पर होते रहने के कारण देश के अलग-अलग शहरों में शिक्षा ग्रहण की है।

12वीं पास करने के बाद उनका चयन एमएनएस (मिलिट्री नर्सिंग सर्विस) सर्विस में हो गया। उसके बाद पांच साल की ट्रेनिंग के बाद गुरुवार को उनकी पासिंग आउट परेड मुंबई में हुई। उनकी पहली पोस्टिंग 158 बेस अस्पताल बागडोगरा (दार्जिलिंग) में हुई है।

विनीता के चाचा अनुराग त्रिपाठी, एक भाई विकास तिवारी एयरफोर्स में, एक चाचा विनय तिवारी आर्मी से रिटायर हैं। गांव में उनके बाबा रामलाल त्रिपाठी को बधाई देने के लिए तमाम लोग शुक्रवार को पहुंचे। उनकी मां सीमा और भाई आयुष दिल्ली में है। पिता की पोस्टिंग हिसार में है।

विनीता ने बताया कि इस मुकाम तक पहुचने के लिए उन्होने बहुत मेहनत की है। इसमें कोई शक नहीं है कि सेना की ट्रेनिंग काफी मुश्किल भरी होती है। पहले दो साल तो मात्र तीन-तीन घंटे की ही नींद मिलती है, पूरे दिन को ऐसे शेड्यूल किया जाता है कि एक मिनट बैठने का समय नहीं मिल पाता है। होम सिकनेस भी रहती है। लेकिन इन सबसे ऊपर है सेना में आना। यह गर्व और सम्मान की बात है।

यह कहना है विनीता का। अमर उजाला से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि 12वीं के बाद एक लाख लड़कियों में मात्र 200 लड़कियां ही लिखित परीक्षा, मेडिकल, इंटरव्यू पार कर पाई थीं। उसके बाद साढ़े चार साल की ट्रेनिंग शुरू हुई। सुबह साढ़े चार बजे उठते थे और रात एक बजे तक सोते थे।