12 की उम्र में हो गयी शादी, 8 हजार से अधिक मधुबनी पेंटिंग, कुछ ऐसे किया पद्मश्री दुलारी देवी ने संघर्ष 

 


दुलारी देवी की महज 12 साल में शादी हो गई जो 2 साल बाद ही टूट भी गई लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। शादी टूटने के बाद बाद वो अपने मायके वापस आ गईं। घर चलाने के लिए वो अपनी मां के साथ पड़ोस में रहने वाली मिथिला पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के घर झाड़ू-पोंछा का काम करने लगी। इसी दौरान महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग करते हुए देखकर वो भी पेंटिंग करने लगी और आज इस मुकाम पर हैं।

मिथिलांचल की शान मधुबनी की एक और बेटी ने अपनी पेंटिंग की बदौलत न सिर्फ मिथिला बल्कि पूरे बिहार का मान-सम्मान बढ़ाया है। हम बात कर रहे हैं मधुबनी पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट दुलारी देवी की, जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। मधुबनी जिले के रांटी गांव निवासी दुलारी देवी इस साल पद्मश्री पुरस्कार से नवाजी गई हैं। 54 वर्षीया दुलारी देवी अलग-अलग विषयों पर अब तक तकरीबन 8 हजार पेंटिंग बना चुकी है।

पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने पर दुलारी देवी काफी खुश हैं, उनकी कामयाबी पर उनके रांटी गांव में खुशी का माहौल है।दुलारी देवी का कहना है कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तमाम मुश्किलातों से गुजरना पड़ा लेकिन वो चाहती हैं कि उनके गांव की लड़कियों को इस तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े, लिहाजा वो अपने गांव की महिलाओं व लड़कियों को पेंटिंग की शिक्षा देना चाहती हैं। 

दुलारी देवी को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे जाने पर उनके परिजन काफी खुश हैं।।मधुबनी के रांटी गांव में खेती-बारी के काम से जुड़े दुलारी देवी के भाई परीक्षण मुखिया का कहना है कि उनकी बहन बचपन से ही बहुत मेहनती रही हैं और अपने जुनून और लगन की बदौलत ही उन्होंने इतनी बड़ी कामयाबी पाई हैं। दुलारी देवी का पद्मश्री पुरस्कार तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। मल्लाह जाति से आने वाली दुलारी देवी का पद्मश्री पुरस्कार तक का सफर ग्रामीण महिलाओं को प्रेरणा देने वाला है।

बातचीत में दुलारी देवी ने कहा कि महज 12 साल में उनकी शादी हो गई थी लेकिन 2 साल बाद ही उनकी शादी टूट गई जिसके बाद वो अपने मायके वापस आ गईं। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के चलते वो अपनी मां के साथ पड़ोस में रहने वाली मिथिला पेंटिंग की मशहूर आर्टिस्ट महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी के घर झाड़ू-पोंछा का काम करने लगी।

इसी दौरान महासुंदरी देवी और कर्पूरी देवी को पेंटिंग करते हुए देखकर वो भी पेंटिंग करने लगीं। शुरू में  घर-आंगन की दीवारों पर मिट्टी से पेंटिंग करती थीं,फिर लकड़ी की कूची बनाकर कागज और कपड़ों पर भी अपनी कला को उतारने लगीं। धीरे-धीरे उनकी बनाई पेंटिंग को सराहना मिलने लगी, फिर कर्पूरी देवी की हौसलाअफजाई ने उन्हें काफी हिम्मत दी।


पढ़ाई-लिखाई के नाम पर बस अपना नाम भर लिख पाने वाली दुलारी देवी की बनाई पेंटिंग दुनिया भर के कई नामचीन लेखकों के किताबों के साथ ही इग्नू द्वारा तैयार मैथिली भाषा के पाठ्यक्रम के मुख्यपृष्ठ पर भी छप चुकी हैं।
दुलारी देवी की बनाई पेंटिंग गीता वुल्फ की 'फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश' के अलावा मार्टिन ली कॉज की फ्रेंच में लिखी किताबों की शोभा बढ़ा रही है।