महज 11 साल की उम्र में संभाली पिता की डेयरी फार्मिग, आज इनकम सुनकर रह जाएंगे हैरान

Jobs Haryana, Success Story Of Shraddha Dhawan बड़ी उम्र में सफलता हासिल करना, कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन, छोटी उम्र में सफलता की बुलंदियों को छूना वाकई एक बहुत बड़ी बात है। आज द बेटर इंडिया, आपको एक ऐसी ही युवती की बड़ी सफलता के बारे में बताने जा रहा है। जिसने महज 11
 

Jobs Haryana, Success Story Of Shraddha Dhawan

बड़ी उम्र में सफलता हासिल करना, कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन, छोटी उम्र में सफलता की बुलंदियों को छूना वाकई एक बहुत बड़ी बात है। आज द बेटर इंडिया, आपको एक ऐसी ही युवती की बड़ी सफलता के बारे में बताने जा रहा है। जिसने महज 11 साल की उम्र से ही कामयाबी की राह पर चलना शुरू कर दिया था और आज अपनी मेहनत और लगन से पर महिने के 6 लाख रूपये तक की कमाई कर रही है।

यह महज एक कहानी नहीं है बल्कि सफलता की कहानी (success story) है। यह कहानी उन लोगों को प्रेरणा देती है जो खेती-किसानी और पशुपालन में कामयाब होना चाहते हैं। यह कहानी है  यह कहानी है महाराष्ट्र के ऐसे इलाके की जहां सूखा और बदहाली की खबरें सुर्खियां बनती हैं। दरअसल, अहमदनगर से 60 किमी दूर एक निघोज गांव है जहां श्रद्धा धवन नाम की एक 11 साल की लड़की ने डेयरी के उद्योग में नई इबारत लिखी है।

श्रद्धा धवन की यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि अगर कुछ कर गुजरने की ललक हो और कामयाब बनने की चाहत हो तो इंसान बुलंदियों का शिखर जरूर छूता है। इस सक्सेस स्टोरी की शुरुआत 1998 से शुरू होती है जब श्रद्धा धवन का परिवार तंगगाली से गुजर रहा था। धवन के परिवार में कभी 6 भैसें होती थीं जिससे दूध का अच्छा धंधा चल रहा था और परिवार भी मजे से चल रहा था। 1998 आते-आते परिवार में सिर्फ एक भैंस बच गई क्योंकि आर्थिक तंगहाली की वजह से भैंसों को बेचकर खर्च चलाया जाने लगा।

श्रद्धा धवन के पिता दिव्यांग हैं।  उन्हें बाइक पर दूध ढोकर दूर-दूर तक बेचने जाना होता था। यह काम उनके लिए मुश्किल था क्योंकि शारीरिक परिस्थितयां जवाब दे रही थीं। दूध बेचने के अलावा और भी घर के कामकाज होते थे। इस वजह से भैंसें बिक गईं और 1998 तक सिर्फ एक भैंस  ही रह गई। श्रद्धा धवन अपने पिता की परिस्थितियों से वाकिफ थी। वह अपने पिता की मेहनत दिन-रात देखती थी। श्रद्धा को लगा कि ऐसे वक्त में अगर उनका साथ न दिया तो आगे और भी दिक्कत हो सकती है। 11 साल में श्रद्धा धवन पिता के साथ डेयरी के काम में उनका हाथ बटाने लग गई और भैंसों का दूध निकाल कर बेचना शुरू किया।

श्रद्धा को इस काम में ज्यादा दिक्कत नहीं आई क्योंकि उसने बाइक से उन जगहों पर दूध पहुंचाना शुरू कर दिया जहां उसके पिता ले जाया करते थे। श्रद्धा ने एक इंटरव्यू में बताया है, मेरे पिता जी बाइक ठीक से नहीं चला पाते थे। मेरा भाई काफी छोटा था इसलिए वह पिता जी का काम नहीं संभाल सकता था। इसलिए 11 साल की उम्र में मैंने खुद यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेना शुरू कर दिया। हालांकि यह मेरे लिए अटपटा काम था क्योंकि हमारे गांव में कोई लड़की डेयरी के काम नहीं करती थी और किसी ने कभी ऐसा काम करते हुए देखा भी नहीं था।

इस कहानी का एक अहम पड़ाव और भी है। अक्सर देखा जाता है कि कामकाज में उतरे लोग अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते। लेकिन श्रद्धा के साथ ऐसी बात नहीं थी। उसने अपने पिता का काम संभालते हुए पढ़ाई जारी रखी। श्रद्धा की मेहनत रंग लाई और पढ़ाई के साथ डेयरी का बिजनेस भी चमकता रहा। आज नतीजा यह है कि कभी तंगहाली में चलने वाला परिवार आज खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहा है। इसमें सबसे बड़ा रोल श्रद्धा की कड़ी मेहनत का है।

श्रद्धा धवन की मेहनत से उनके परिवार के पास आज 80 भैंस हैं। डेयरी के उद्योग से 2 मंजिला मकान भी खड़ा हो गया है। भैंसों को रखने के लिए आज इतना बड़ा शेड बन गया है कि पूरे जिले में ऐसा कोई शेड नहीं है। परिवार की आर्थिक हालत बेहद मजबूत है और महीने का इनकम 6 लाख रुपये तक पहुंच गया है। आसपास के लोगों को पता चला कि दूध शुद्ध है और उसमें कोई मिलावट नहीं है, जिससे कि बिक्री में बड़ी तेजी देखी गई।

लोगों को यह भी पता चला कि श्रद्धा धवन का परिवार जिन भैंसों को पालता है, उन्हें ऑर्गेनिक चारा खिलाया जाता है। इससे लोगों में और भरोसा बढ़ गया। यह चारा बगल के खेतों में ही उगाया जाता है। भैंसों का शेड दिन में दो बार साफ किया जाता है। मवेशियों का रेगुलर चेकअप किया जाता है। श्रद्धा के परिवार में आज 80 भैंसें हैं जिनसे हर दिन 450 लीटर दूध का उत्पादन होता है। दूध का बिजनेस सही चलने के साथ परिवार का पालन-पोषण भी बेहद अच्छे ढंग से हो रहा है।