औरतें क्यूं भर्ती है मांग में सिंदूर, इसके पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण...जानिए इस खबर में...

 

Religious and Scientific Beliefs Related To Sindoor: भारत (India) में वेडिंग सीजन (Wedding Season) की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू (Hindu) धर्म में विवाह का बहुत महत्व होता है। हमारे देश में शादियों को किसी त्योहार से कम नहीं आंका जाता है। जब किसी घर में शादी होने वाली होती है, तो विवाह से पहले रस्में शुरू हो जाती हैं। आपने नोटिस किया होगा कि हल्दी, मेहंदी और संगीत जैसी रस्मों में भी दुल्हन को अच्छी तरह से सजाया जाता है। महिलाएं शादी की रस्मों की शुरुआत से लेकर जब तक सुहागिन रहती हैं, तब तक सोलह श्रृंगार करती हैं। बता दें कि 16 श्रृंगार का महज सुंदरता बढ़ाने और सजने-संवरने से संबंधित नहीं होता है, बल्कि इसके कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी होते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि सोलह श्रृंगार का सीधा संबंध सुहागिन महिलाओं के सौभाग्य और सेहत से जुड़ा होता है। वैसे तो सोलह श्रृंगार पूरा ही बहुत अहम होता है, लेकिन सुहागिन महिलाओं के लिए सिंदूर को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि ये महिला के शादीशुदा और सौभाग्यवती होने का सबसे अहम प्रमाण होता है। 16 श्रृंगारों से जुड़े अन्य चीजें जैसे कि बिंदिया, पायल, चूड़ियां, गजरे आदि का इस्तेमाल कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं, लेकिन सिंदूर एकमात्र ऐसी चीज है, जिसे सुहाग की निशानी माना जाता है। इसका इस्तेमाल केवल शादीशुदा महिलाएं ही कर सकती हैं। विवाह के समय दूल्हा दुल्हन की मांग भरता है। इसके बाद से विवाहित महिला हमेशा अपनी मांग में सिंदूर को सजाती हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिरकार शादीशुदा महिलाओं के लिए सिंदूर लगाना क्यों इतना जरूरी होता है और इससे जुड़ी धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं क्या हैं?

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सिंदूर क्यों है जरुरी?

हिंदू धर्म में सिंदूर लगाने की परंपरा कोई नई नहीं है बल्कि यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत और रामायण काल में भी सिंदूर लगाने की रस्म का जिक्र मिलता है। पौराणिक मान्यताएं तो ये तक बताती हैं कि माता पार्वती भी सिंदूर लगाती थीं। बात करें महाभारत में सिंदूर के उल्लेख की तो एक बार द्रौपदी ने निराशा और क्रोध में आकर अपने मांग का सिंदूर मिटा लिया था। वहीं, रामायण काल में भी इसका उल्लेख मिलता है।

एक दिन जब माता सीता श्रृंगार करते हुए अपनी मांग में सिंदूर भर रही थीं, तभी वहां खड़े हनुमान जी ने उनसे पूछा, "माता आप मांग में सिंदूर क्यों लगा रही हैं? तब माता सीता ने हनुमान जी को बताया कि यह मेरे और प्रभु श्रीराम के रिश्ते को मजबूत बनाता है और श्रीराम को दीर्घायु बनाता है। माता सीता की बात सुनकर हनुमान जी को लगा कि केवल एक चुटकी सिंदूर से श्रीराम को दीर्घायु कर सकता है, तो मेरे पूरे शरीर में सिंदूर लगाने से वे अमर हो जाएंगे। ये सोचकर हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, इन दोनों ही प्रसंग से पता चलता है कि महाभारत और रामायण दोनों में ही सिंदूर लगाने की परंपरा थी।

सिंदूर लगाने की परंपरा पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण

बता दें कि हिन्दू धर्म से जुड़े सभी रस्मों और रिवाजों के पीछे विज्ञान का बहुत बड़ा हाथ होता है। भारतीय परंपरा में बनाए गए सभी नियम साइंटिफिक रूप से से भी हमारे लिए बहुत अच्छे होते हैं। ऐसे में आज हम जानेंगे कि सिंदूर लगाने के पीछे विज्ञान क्या कहता है? वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महिलाओं के सिंदूर से मांग भरने का संबंध पूरे शरीर से जुड़ा होता है। सिंदूर में पारा धातु (Mercury metal) पाया जाता है, जो कि ब्रह्मरंध्र ग्रंथि (Brahmarandhra gland) के लिए बहुत ही प्रभावशाली धातु होता है। इससे महिलाओं में स्ट्रेस कम होता है और उनका दिमाग हमेशा एक्टिव रहता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि सिंदूर लगाने से ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहता है।