राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने रचा इतिहास, भ्रूण उत्पादन तकनीक से मारवाड़ी घोड़ी ने दिया बच्चे को जन्म 

 

राजस्थान के बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने एक बड़ी सफलता हासिल कर ली है. यहां अश्व अनुसंधान उत्पादन परिसर में वैज्ञानिकों ने भ्रूण स्थानांतरण तकनीक का उपयोग करके घोड़े के बच्चे (बछेड़ी) का उत्पादन किया है.

भ्रूण स्थानांतरण तकनीक में, ब्लास्टोसिस्ट अवस्था (गर्भाधान के 7.5 दिन बाद) में एक निषेचित भ्रूण को दाता घोड़ी से एकत्र किया गया. 

इसके बाद सरोगेट मां को सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया. सरोगेट मां ने शुक्रवार को एक स्वस्थ बच्चे "राज प्रथमा" को जन्म दिया है.

इस बच्चे का वजन 23 किलो है. इस प्रक्रिया को पूरा कर अश्व उत्पादन परिसर, बीकानेर राजस्थान ने देश का पहला संस्थान बनकर इतिहास कायम कर दिया है.

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के निदेशक आईसीएआर डॉ. टी.के. भट्टाचार्य ने कहा कि मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की लगातार घटती आबादी चिंता का विषय है.

ऐसे में इस नस्ल के घोड़ों के संरक्षण और प्रसार के लिए आईसीएआर एनआरसीई काम कर रहा है. इस दिशा में, मारवाड़ी घोड़ी की नस्ल के भ्रूणों को हिमतापीय परिरक्षण करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई थी.

राष्ट्रीय पशुधन मिशन की एक परियोजना के तहत डॉ. टीआर टल्लूरी, डॉ. यशपाल शर्मा, डॉ. आर.ए. लेघा और डॉ. आर.के. देदार ने मारवाड़ी घोड़ी में सफल भ्रूण स्थानांतरित किया. इस परियोजना में टीम को डॉ. सज्जन कुमार, मनीष चौहान ने सहयोग दिया. डॉ. जितेंद्र सिंह ने कृषि प्रबंधन में मदद की.