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Transgender Tradition: किन्नर बन सकते है सिर्फ एक दिन की दुल्हन, शादी के कुछ घंटों बाद हो जाते है विधवा, फिर होता है ये काम

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Transgender Tradition: किन्नरों की जिंदगी आम लोगों की जिंदगी से बहुत कठिन होती है एक घर में जब किन्नर पैदा होता है तभी से ही उसकी जिंदगी का संघर्ष शुरू हो जाता है। इनकी जिंदगी काफी रहस्यमयी होती है। आपके मन में भी कई बार यह सवाल उठता होगा उनकी जिंदगी कैसी होती है, क्या उनको शादी करने की अनुमति होती है और वो आपस में मर्द और औरत का रोल निभाते हैं। हकीकत शायद जितना हम सोचते है उससे बहुत अलग हो सकती है।

आपको बता दें किन्नर अपनी जिंदगी में शादी तो जरूर कर लेते है लेकिन केवल वह दुल्हन केवल एक ही रात का बन सकता है। लगा न थोड़ा अजीबोगरीब लेकिन यह इनके समुदाय की ही परंपरा है।

 किन्नर समाज में कैसे करते है जीवन व्यतीत 

हम सभी को उनके जीवन की परंपराओं और रीतिरिवाजों के बारे में बहुत कम मालूम है। इसीलिए हमें वह थोड़े रहस्य्मय लगते है। हर किन्नर अपने जीवन शादी जरूर करता है लेकिन इस शादी में कई पेंच होते हैं। सभी किन्नरों को मालूम है उनकी शादी बस कुछ ही घंटों में खत्म हो जाएगी। 

महाभारत से लेकर यक्ष पुराण में है किन्नरों का जिक्र 

यदि आप भी किन्नरों के बारें में जानना चाहते है तो आपको बता दें हमारे ग्रंथ किन्नर पात्रों से भरे हुए हैं। उन्हें यक्षों और गंधर्वों के बराबर माना गया है। महाभारत से लेकर यक्ष पुराण तक शिखंडी, इला, मोहिनी जैसे पात्र हैं। कृष्ण द्वारा सुनाई गयी कहानियों में बहुत बार ट्रांसजेंडर्स का जिक्र किया जाता है। 

इन जगहों पर नहीं आते किन्नर 

भारत में ज्यादातर किन्नरों को 'हिजड़ा' कहकर पुकारते है। ज्यादातर जगहों पर ये लोग अपनी ही सोसाइटी बनाकर, दुनिया से कटकर, कुछघरों में रहने को मजबूर हैं। इनकी अपनी परंपराएं और मान्यताएं हैं।

किन्नरों का लगता है विवाह मेला  

आपको जानकारी जरूर होनी चाहिए कि दक्षिण भारत में हर साल किन्नरों का  विवाह मिला कूवागाम मेले के तौर पर लगता हैं। इस साल भी ये 18 अप्रैल को शुरू हुआ और 03 मई तक चला। इसमें 02 और 03 मई किन्नरों के विवाह हुए। ये मेला चूंकि तमिलनाडु के एक गांव कूवागाम में होता है, यह मेला 18 दिनों तक चलता है। 


 
जानिए क्या है एक दिन की दुल्हन बनने की कहानी 

इस मेले में जो भी किन्नर विवाह करता है वे सिर्फ एक ही दिन के लिए दुल्हन बनता है।  इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। अरावन या इरावन नाम के देवता का नाम महाभारत में आता है। वह धनुर्धर अर्जुन और नाग राजकुमारी उलूपी के बेटे थे। 

महाभारत की कहानी के अनुसार युद्ध के वक्त देवी काली को खुश करना होता है। अरावन उन्हें खुश करने के लिए अपनी बलि देने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन इनकी एक ही शर्त थी कि वह अविवाहित मरना नहीं चाहते थे। तभी श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और मोहिनी का रूप धरा जिसके बाद उन्होंने अरावन से शादी की। अगली सुबह अरावन की मृत्यु हो गयी जिसके बाद श्रीकृष्ण ने विधवा की तरह  विलाप किया। 

18 दिनों तक चलता है मेला 

यही कारण है कि किन्नर एक दिन के लिए अरावन से शादी करते हैं। अगले दिन वो विधवा बन जाते हैं और फिर विधवा बनकर विलाप करते हैं। यह उनकी परंपरा होती है जिसको वह जीतें हैं। किन्‍नरों का विवाहोत्‍सव तमिलनाडु में देखा जा सकता है। 

आपको बता दें तमिल में नए साल की पहली पूर्णिमा को किन्नरों का यह उत्सव शुरू किया जाता है जो लगभग 18 दिन लगातार चलता है। 17वें दिन भगवान अरावन से शादी की जा जाती है। वे अरावन को पति और खुद को पत्नी मानते हैं और नई दुल्हन की तरह ही श्रृंगार करते हैं। फिर इन्हे मंदिर के पुजारी द्वारा मंगलसूत्र पहनाया जाता हैं। 

18वें दिन धर लेते है विधवा रूप 

18वें दिन रोज वे अरावन को मृत मानकर विधवा का रूप धारण कर लेते हैं। किन्नर अपना शृ्ंगार उतार देते हैं। भगवान की मूर्ति तोड़ दी जाती है। शादी के बाद का यह अगला दिन एक आम लड़की के विधवा होने जैसा ही होता हैं। दुल्हन किन्नर पूरे समुदाय के सामने बिलखकर रोती है। 

इन देशों में नहीं दी जाती किन्नरों को इज्जत 

किन्नर अब भारत में समाज से कटे नहीं हुए है, बल्कि पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में इनकी कोई इज्जत नहीं की जाती। ये औरतों के वेश में रहते हैं और सोसाइटी से अलग रहते हैं। 

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