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रंग- बिरंगे तरबूज की खेती से सुर्खियों में छाया हरियाणा का यह किसान, प्रति एकड़ कमाता है 4 लाख रुपए

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 हरियाणा के पानीपत जिले का एक किसान रंग- बिरंगे तरबूज की खेती कर सुर्खियों में छाया हुआ है. गर्मियों के मौसम में तरबूज खाना हर किसी की चाहत होती है. आपने अभी तक बाहर से हरा और अंदर से लाल रंग का ही तरबूज देखा होगा लेकिन ये किसान ऐसे तरबूजों की खेती करता है जो बाहर से पीला और अंदर से लाल या फिर बाहर से हरा और अंदर से पीला होता है. 

ताईवान और थाईलैंड किस्म

पानीपत जिले के गांव सिवाह निवासी रामप्रताप ताईवान और थाईलैंड किस्म के तरबूजों की खेती करता है. इनके तरबूजों की मिठास के लोग दीवाने हैं. ऐसे में इन तरबूजों की डिमांड दिन- प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. रामप्रताप ने बताया कि इस सीजन में उन्होंने थाईलैंड की भी तीन किस्मों को उगाया है. इन तरबूजों की बाजार में कीमत भी अलग-अलग मिलती है.

तरबूजों की कीमत

इस सीजन किसान रामप्रताप ने तरबूजों की तीन नई किस्मों की खेती में हाथ आजमाया था. उनका नाम लो मंच, ऑरेंज मंच और 24 कैरेट गोल्ड है. ऑरेंज मंच बाहर से हरा और अंदर से नारंगी है जबकि येलो मंच अंदर से पीला और बाहर से हरा हैं और 24 कैरेट गोल्ड अंदर से भी पीला और बाहर से भी पीला है. बाजार में इन तरबूजों की उन्हें 50 रूपए प्रति किलो तक कीमत मिल जाती है. 

एक एकड़ से 4 लाख का मुनाफा

रामप्रताप ने बताया कि उसने साल 2019 में ताईवान किस्म के तरबूज की खेती ट्रायल के तौर पर शुरू की थी और इस ट्रायल में उन्हें अपार सफलता हासिल हुई. उन्होंने बताया कि एक एकड़ जमीन पर तरबूज की फसल उगाने में करीब 2 लाख रुपए खर्चा होता है जबकि 6 लाख रुपए के तरबूज बिक जाते हैं. ऐसे में खर्च काटकर एक एकड़ से 4 लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है.

रामप्रताप ने बताया कि सामान्य तरबूजों के बीज की कीमत 25-30 हजार रुपए प्रति किलो होती है जबकि इन यूनिक नस्ल के तरबूजों के बीज की कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए प्रति किलो होती है. इस खेती में विशेष उपलब्धि हासिल करने की वजह से वो सीएम मनोहर लाल के हाथों सम्मानित भी हो चुके हैं. वहीं इजरायल से आए एक डेलिगेशन ने भी रामप्रताप की खेती से खुश होकर उन्हें सम्मानित किया था. 

किसान रामप्रताप ने बताया कि परम्परागत खेती की बजाय बागवानी और ऑर्गेनिक खेती पर जोर दिया जाए तो यह बहुत ही मुनाफे का सौदा है. उन्होंने बताया कि वह बाजार की मंडियों में कभी भी अपने फल और सब्जियां बेचने नही जाते हैं बल्कि लोग खुद उनके खेत से आकर खरीद कर ले जाते हैं. उन्होंने दूसरे किसानों से आग्रह करते हुए कहा कि परम्परागत खेती का मोह त्याग कर कुछ नया करने की सोचें. 

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