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क्या महिला नागा भी निर्वस्त्र रहती हैं? सामने आया हैरान करने वाला सच...जो आपको नहीं होगा पता

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जब जब विख्यात कुम्भ मेले का आयोजन होता है तब तब मेले के अलावा एक और बात चर्चा का विषय बन जाती है और वो है नागा साधू। निर्वस्त्र, जटाधारी, शारीर पर भष्म लगाए नागा कौतुहल का विषय बनते हैं। मृत्यु को मात देने वाले करतब दिखाते शस्त्र से सुसज्जित इन नागाओं को सनातन धर्म का रक्षक माना जाता है। सांसारिक भोग विलास को त्याग देना और इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेना इनकी ख़ास विशेषता है।

ताकत से भरपूर और हथियार से लैस नागा भोजन के लिए भिक्षा पर निर्भर होते हैं। ऐसी बहुत सारी रोचक बातें है नागाओं के बारे में लेकिन सबसे रोचक एक और बात है। शायद आप नहीं जानते होंगे की पुरुष नागाओं के जैसे ही महिला नागा भी होती हैं। क्या ये पुरुष नागाओं से अलग होती हैं? इनके बनने की प्रक्रिया क्या है? इनकी जीवन शैली क्या है? आइये जानते हैं महिला नागाओं से जुड़ी आश्चर्यजनक किन्तु सत्य बातें।

क्या महिला नागा भी निर्वस्त्र रहती हैं?

 पुरुष नागा साधू निर्वस्त्र रहते हैं। आमतौर पर जो लोग नागा साधुओं के बारे में जानते हैं उन्हें इनका निर्वस्त्र रहना आपत्तिजनक नहीं लगता क्योंकि नागाओं का मानना है की हर महिला चाहे वो छोटी सी बच्ची हो या व्यस्क - माँ के समान है और इसलिए ये नागा माँ के सामने शिशु रूप में रहते हैं।

लेकिन महिला नागाओं का क्या? तो आपको बता दें की महिला नागा पीले या गेरुए वस्त्र से अपना तन ढक के रखती हैं। ये वस्त सिले नहीं होने चाहिए। पीले वस्त्रो में या फिर गेरुए वस्त्र में महिला नागा कुम्भ मेले में दिख जायेंगी। वैसे महिला नागा आमतौर पर भ्रमण करती बहुत कम देखने को मिलती हैं। ये तिलक लगाती हैं और सम्मान से इन्हें माता कहकर बुलाया जाता है।

क्या महिला नागा भी पुरुष नागाओं से जैसे सात्विक हो जाती हैं?

नागा बनने की प्रक्रिया काफी कठिन है। सांसारिक मोह माया भोग विलास का त्याग करना पड़ता है, इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित करना पड़ता है, भिक्षा मांग कर खाना पड़ता है और ध्यान साधना में ज्यादा से ज्यादा समय बिताना पड़ता है। ये शर्तें सिर्फ पुरुष नागाओं के लिए ही नहीं है, यहीं शर्ते महिला नागाओं पर भी लागू होती हैं। इन्हें भी दैहिक और सांसारिक सुख का त्याग करना होता है और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए नागा जीवन शैली को अपनाना होता है।

जिंदा रहते हुए ही अपना श्राद्ध कर्म सामान्यत

श्राद्ध कर्म किसी के मरने के बाद होता है किन्तु नागा जीवित रहते हुए ही अपना पिंडदान कर देते हैं। ऐसा महिला नागाओं को भी करना होता है। 10 से अधिक वर्षो तक इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है फिर सर मुंडवा कर किसी पवित्र नदी में स्नान करके इन्हें नागा होने की दीक्षा दी जाती है। इसी दौरान ये अपना पिंडदान भी कर देती हैं जो इस बात का द्योतक है कि अब जीवन सिर्फ ध्यान साधना और ईश्वर उपासना के लिए समर्पित है। इसके बाद ये बालों को प्राकृतिक रूप से रखती हैं जिससे जटा बन जाते हैं।
 

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