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Vikas Divyakirti ने क्यों छोड़ी सरकारी नौकरी? UPSC Exam में क्या थी रैंक?

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Dr. Vikas Divyakirti: डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति को वो सब लोग अच्छी तरह से जानते हैं और फॉलो भी करते हैं जो UPSC की तैयारी करते हैं. यूपीएससी की तैयारी करने वाले उम्‍मीदवारों को डॉ. विकास दिव्यकीर्ति  बड़े ही सहज और सरल अंदाज में किसी भी विषय के बारे में जानकारी देते हैं.

आज हम डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति की जर्नी के बारे में बात कर रहे हैं कि उन्होंने कैसे तैयारी की और फिर यूपीएससी एग्जाम क्रैक करके अफसर बन गए. लेकिन अफसर बनने के बाद ऐसी क्या बात हो गई जोकि उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ गई?

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति 


हरियाणा के एक मध्यमवर्गीय परिवार में डॉ. दिव्यकीर्ति का जन्म हुआ था. माता-पिता दोनों हिंदी साहित्य के प्रोफेसर रह चुके हैं. इसलिए इनका बचपन से ही हिंदी के प्रति विशेष लगाव रहा है. दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, सिनेमा अध्ययन, सामाजिक मुद्दे और राजनीति विज्ञान उनकी रुचि के अन्य विषय हैं. इन्‍होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में एमए, एमफिल और पीएचडी की है. इसके अलावा, ये दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय विद्या भवन से अंग्रेजी से हिंदी ट्रांसलेशन में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं.

Original Story rank of dr Vikas Divyakirti in UPSC exam Because of this I  left my government job and then | Vikas Divyakirti की UPSC Exam में क्या थी  रैंक? इस वजह

1996 में भरा UPSC का फॉर्म

साल 1996 में सोचा कि यूपीएससी की तैयारी करनी चाहिए. तो UPSC का फॉर्म भर दिया. फर्स्ट अटेंप्ट के लिए ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर हिस्ट्री भर दिया, लेकिन बीच में ही फैसला बदल दिया. उन्होंने एक दिन सोशियोलॉजी की किताब पढ़ी और लगा इसे ऑप्शनल सब्जेक्ट बनाना चाहिए तो उन्होंने हिस्ट्री को छोड़कर सोशयोलॉजी को अपना ऑप्शनल सब्जेक्ट बना लिया. उस समय ऑप्शन सब्जेक्ट बदलने की सुविधा उपलब्ध थी. एग्जाम के तीनों राउंड हुए. इसमें एक इंटरेस्टिंग बात ये थी कि 26 मई 1997 को UPSC के इंटरव्यू और रिजल्ट के बीच शादी भी कर ली.

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फाइनल रिजल्ट और रैंक


यूपीएससी का फाइनल रिजल्ट आया. तारीख थी 4 जून 1998. यूपीएससी के रिजल्ट में 384 रैंक आई. उस वक्त IAS की 56 और IPS की 36 सीटें थी. इसलिए सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस(CSS)ऑफर की गई और इसके लिए उन्होंने हां कर दी. जून 1999 में सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस जॉइन कर ली. उन्होंने तय कर लिया था कि लंबे समय तक नौकरी नहीं करनी है.

इसलिए यह सफर लंबा नहीं चल पाया और 4-5 महीने में ही रिजाइन कर दिया. शिवाजी कॉलेज में पढ़ाने के लिए एक नौकरी निकली थी. उसमें इसलिए सेलेक्शन नहीं हुआ क्योंकि उनको सरकार की तरफ से रिलीविंग लेटर नहीं मिला था. साल 2001 में रिलीविंग लेटर मिला. इस बीच उन्होंने हिंदी पढ़ाना शुरू कर दिया. और इस तरह से उनके दृष्टि IAS कोचिंग की स्थापना हुई. 

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